हिंदी भाषा में मानक और अमानक की पहचान

हिंदी भाषा में मानक और अमानक की पहचान


 


मानक भाषा लिखने के काम आती है और बोलने के भी। लिखित और उच्चरित मानक हिन्दी के जो प्रयोग व्याकरणसम्मत, सर्वमान्य, एकरूप और परिनिष्ठित है उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है


1- बहुत से लोग बड़ी 'ई' की मात्रा का गलत प्रयोग करते हैं, जैसे शक्ती, तिथी, कान्ती, शान्तीवास्तव में इनके मानक रूप है- शक्ति, तिथि, कान्ति, शान्ति आदि।


2- बहुत से लोग 'ऋ' को रि बोलते हैं जैसे रिण, रीता। यह अमानक प्रयोग है; किन्तु 'ऋ' अब शुद्ध स्वर नहीं रह गया है। उच्चारण में 'रि को 'ऋ' का उच्चारण स्वीकार कर लिया गया है किन्तु लिखने में संस्कृत शब्दों में 'ऋ' ही मानक प्रयोग है जैसे- ऋण, ऋता आदि।


3- हिन्दी में अंग्रेजी के कुछ ऐसे शब्द प्रचलित हो गए हैं जिनमें 'T' की ध्वनि होती है। जैसे- डॉक्टर, कॉलेज, ऑफिस। हिन्दी में डाक्टर, कालेज, आफिस बोलना या लिखना अमानक प्रयोग माना जाता है


4- कुछ शब्द 'इ' और 'ई' देनों मात्राओं से लिखे जाते हैं जैसे- हरि/हरी, स्वाति/स्वातीकिन्तु व्यक्ति के नाम का मानक रूप वही माना जाता है जो नियम द्वारा मान्य है या वह स्वयं लिखता है जैसे-डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सही है, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय नहीं, क्योंकि डॉ. हरीसिंह, अपना नाम हरीसिंह लिखते थे।


5- कुछ लोग कुछ शब्दों में बड़ी 'ई' के स्थान पर छोटी 'इ' की मात्रा लगाते हैं। जैसे श्रीमति, मैथिलिशरण। ये अमानक प्रयोग है। इनके मानक रूप है- श्रीमती, मैथिलीशरण।


6- ऐसे ही निम्नलिखित शब्दों के अन्त में हस्व 'उ' का प्रयोग मानक है, दीर्घ 'ऊ' का नहीं


मानक           अमानक


इन्दु                इन्दू


प्रभु                 प्रभू      


शम्भु               शम्भू


7- हिन्दी में 'र' के साथ जब 'उ' अथवा 'ऊ' की मात्रा लगायी जाती है तब उसका रूप होता है 'रुपया' अथवा 'रूप'।


8- जिन शब्दों में हिन्दी में 'औ' की मात्रा होती है, उनका उच्चारण 'अ' 'उ' की तरह करना चाहिए, ओ की तरह नहीं। जैसे 'औरत' का मानक उच्चारण 'अउरत' की तरह होगा, 'ओरत की तरह नहीं।


इसी प्रकार 'ए' का उच्चारण भी सावधानी से करना चाहिए। 'मैं' का उच्चारण 'मॅय' की तरह होगा 'में' की तरह नहीं। 'सेनिक', 'गोरव' उच्चारण अमानक है, 'सैनिक', 'गौरव' आदि मानक


9- संस्कृत के शब्दों में दो स्वरों को एक साथ लिखना अमानक है, जैसे 'स्थाई' अमानक है, मानक 'स्थायी' है।


10- हिन्दी में आजकल अनुनासिक चिह्न चन्द्रबिन्दु( ) के स्थान पर अनुस्वार लिखा जाने लगा है, जैसे हँस के स्थान पर 'हंस'। ऐसा लोग लापरवाही के कारण करते हैं। मुद्रण की सुविधा के लिए भी अब हिन्दी में अनुनासिक चिह्न एवं चन्द्रबिन्दु के स्थान पर अनुस्वार लिखा जाने लगा है, जैसे कुंवर, मां, बांस आदि, परन्तु इनके मानक रूप हैं : कुँवर, माँ, बाँस।


11- जिन शब्दों के अन्त में 'ई' होती है या 'ई' की मात्रा होती है उनका जब बहुवचन बनाया जाता है तो वह हस्व 'इ' की मात्रा में परिवर्तित हो जाती है, जैसे मिठाई-मिठाइयाँ, दवाई-दवाइयाँ, लड़की-लड़कियाँ आदि।


इसी प्रकार यदि शब्द के अन्त में 'ऊ' की मात्रा हो तो उनके बहुवचन में हस्व 'उ' की मात्रा हो जाती है, जैसे आँसू-आँसुओं, लड्डू-लड्डुओं आदिमानक हिन्दी में अब 'क' के 'क' का प्रयोग भी होने लगा है। 'क विदेशी(फारसी, अंग्रेजी) शब्दों में आता है जैसे 'कलम'।


इसी प्रकार ख, ग, ज, फ ध्वनियाँ भी हिन्दी में स्वीकार कर ली गयी हैं। खत, गैरत, जनाब, सफा, बोलना पढ़े-लिखे होने की निशानी मानी जाती है।


12- 'व' और 'ब' में भेद होता है। 'व' के स्थान पर 'ब' बोलना उचित नहीं है। इस प्रकार 'ज्ञ' और 'क्ष' केवल संस्कृत शब्दों में ही प्रयुक्त होता है।


13- हिन्दी में 'श', 'ष', 'स' तीन अलग-अलग ध्वनियाँ हैं- सड़क, शेष, विष, षटकोण आदि मानक शब्द रूप हैं। 


14- 'ष्ट' और 'ष्ठ' का उच्चारण प्रायः भ्रम उत्पन्न करता है। इनके बोलने और लिखने में शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए, जैसे 'इष्ट', 'नष्ट', 'भ्रष्ट', 'स्वादिष्ट', 'कनिष्ठ, ज्येष्ठ, घनिष्ठ, प्रतिष्ठा आदि।


15- रेफ लगाने में प्रायः भूल होती है। रेफ वास्तव में 'र का हलन्त रूप है। यह जहाँ बोला जाता है, सदैव उसके आगे के अक्षर पर लगता है। जैसे कर्म, धर्म, आशीर्वाद आदि आर्शीवाद लिखना गलत है।


16- संस्कृत में रेफ से संयुक्त व्यंजन का द्वित्व होता भी है और नहीं भी होता। कर्त्तव्य, कर्तव्य, अर्द्ध, अर्ध, आर्य, आर्य, भार्या, भार्या आदि दोनों रूप मानक हैं। हिन्दी में भी ये दोनों रूप शुद्ध स्वीकारे गये हैं परन्तु निम्नलिखित शब्दों का द्वित्व अलग नहीं किया जा सकता : महत्त्व, तत्त्व, उज्ज्वल, निस्संदेह, निश्शंक ही शुद्ध रूप हैं; महत्व, तत्व, उज्वल, निसंदेह, निशंक नहीं।


17- हिन्दी में नया, गया, लाया तो ठीक माने जाते हैं। पर उनके स्त्रीवाची रूप कभी नयी, गयी, लायी लिखे जाते हैं, तो कभी नई, गई, लाई। वास्तव में आई और आयी, लाई और लायी, भाई और भायी में फर्क होता है। देखिए-


आई              मा (मराठी में)


आयी             आया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप


लाई              धान का खिला हुआ रूप


लायी             लाया का स्त्रीलिंग रूप


भाई              बन्धु


भायी             भाया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप


इस प्रकार 'बनिए' ओर 'बनिये' में भी अन्तर करना चाहिए। 'बनिए' बनना क्रिया का रूप है जबकि 'बनिये' बनिया का बहुवचन है। जिन शब्दों के एकवचन में य हो, उनके बहुवचन और स्त्रीलिंग रूपों में भी य ही होना चाहिए।


18- सम्बोधन में बहुत से लोग देशवासियों, भाइयों जैसे प्रयोग करते हैं। यह अमानक हैंसम्बोधन बहुवचन में 'ओ' का प्रयोग होना चाहिए, 'ओं का नहीं।


19- हिन्दी में जन, गण, वृन्द जैसे शब्द बहुवचनवाची है अत: गुरुजन, विधायक गण, पक्षी वृन्द ही सही हैं. गुरुजनों, विधायक गणों पक्षी वृन्दों जैसे रूप आमानक हैं।


20- हिन्दी के कारक चिह्नों में सबसे अधिक कठिनाई 'ने को लेकर होती है। मानक हिन्दी में 'ने' का प्रयोग कर्ता-कारक में सकर्मक धातुओं से बने भूतकालिक क्रिया रूपों के साथ होता है। जैसे -


1. मैंने कहा।


2. राम ने रावण को मारा। 


3. मैंने गाना गाया। 


किन्तु निम्न वाक्यों में 'ने' का प्रयोग अमानक है-


1. मैं ने हँसा। 


2. राम ने बहुत रोया।


21- मानक हिन्दी में विशेषण का लिंग, संज्ञा के लिंग के अनुरूप बदलने की परिपाटी नहीं है। संस्कृत में सुन्दर बालक किन्तु सुन्दरी बालिका जैसे प्रयोग प्रचलित है। हिन्दी में हम सुन्दर लड़की और सुन्दर लड़का कहते हैं। वास्तव में हिन्दी में संज्ञा के लिंग के अनुरूप विशेषण का लिंग नहीं बदला जाना चाहिए।


22- निश्चयवाचक अव्यय के रूप में हिन्दी में 'न', 'नहीं' और 'मत' मानक हैं, 'ना' नहीं। इस तरह के वाक्य ठीक नहीं हैं- 'ना वह बैठा और ना ही उसने बात की।


वास्तव में भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है। अतः जिन शब्दों, अभिव्यक्तियों और वाक्य रूपों का मानकीकरण हो चुका है, उनका पालन करना चाहिए।