राजभाषा हिंदी की विशेषताएँ
1. साहित्यिक हिन्दी में जहाँ अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। राजभाषा हिन्दी में केवल अभिधा का ही प्रयोग होता है।
2. साहित्यिक हिन्दी में एकाधिकार्थता-चाहे शब्द के स्तर पर हो चाहे वाक्य के स्तर पर, काव्य-सौन्दर्य के अनुकूल मानी जाती है। इसके विपरीत राजभाषा हिन्दी में सदैव एकार्थता ही काम्य होती है।
3. राजभाषा अपने पारिभाषिक शब्दों में भी हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों से पूर्णतः भिन्न है। इसके अधिकांश शब्द प्रायः कार्यालयी प्रयोगों के लिए ही उसके अपने अर्थ में प्रयुक्त होते है। जैसे :
आयुक्त = Commissioner
निविदा = Tender
विचारक = Arbitrator
आयोग = Commission
प्रशासकी = Administrative]
मंत्रालय = Ministry
उन्मूलन =Abolition
आबंटन = Alloment आदि।
4. हिन्दी में सामान्यतः समस्रोतीय घटकों से ही शब्दों की रचना होती है।
जैसे संस्कृत शब्द निर्धन + संस्कृत भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय 'ता' = निर्धनता। किन्तु अरबी-फारसी शब्द गरीब + ता = गरीबता। किन्तु अरबी-फारसी शब्द गरीब + अरबी-फारसी भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय 'ई' = गरीबी। हिन्दी में न तो निर्धन+ई-निर्धनी बनेगा और न ही गरीब+ता=गरीबतालेकिन राजभाषा में काफी सारे शब्द विषम स्रोतीय घटकों से बने है। जैसे :
उपकिरायेदार = Sub-letting उपकिरायेदार
जिलाधीश = Collector
उपजिला = Sub-district
अरद्द = uncancelled
अस्टांपित = unstamped
अपंजीकृत = unregistered
मुद्राबन्द = sealed
राशन अधिकारी = ration-officer ... आदि।
अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, रूसी आदि समृद्ध भाषाओं में एक ही शैली मिलती है, पर राजभाषा हिन्दी में एक ही शब्द के लिए कई शब्द हैं। जैसे-
(क) कार्यालय -दफ्तर – ऑफिस
(ख) न्यायालय–अदालत-कोर्ट-कचहरी
(ग) शपथ-पत्र-हलफनामा-एफिडेविट
(घ) विवाह-शादी-निकाह आदि।
5. राजभाषा हिन्दी का प्रयोग राजतन्त्र का कोई व्यक्ति करता है जो प्रयोग के समय व्यक्ति न हो कर तंत्र का एक अंग होता है। इसलिए वह वैयक्तिक रूप से कुछ न कहकर निर्वैयक्तिक रूप से कहता है। यही कारण है कि हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों में जबकी कर्तृवाच्य की प्रधानता होती है, राजभाषा हिन्दी के कार्यालयी रूप में कर्मवाच्य की प्रधानता होती हैउसमें कथन व्यक्ति-सापेक्ष न होकर व्यक्ति-निरपेक्ष होता है। जैसे- 'सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है', 'कार्यवाही की जाए', 'स्वीकृति दी जा सकती है' आदि।