गजराज
(चार चरण समतुकांत। 12वर्ण पर यति विधान)
डॉ.प्रतिभा कुमारी पराशर, हाजीपुर (बिहार) भारत
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वन के पशु जान गँवाय रहे , रजनीचर मार गिरावत है।
वनसाथिन जो बड़भागिन है ,अपनी पहचान बचावत है।।
बलवीर वही गिर भूमि पड़ा , वह तो गजराज कहावत है।
हथिनी पर जोर पहाड़ गिरा , अबहूँ सुनता न महावत है।।
बच जाय सभी अब सोच जरा , जब निश्चय होत बचावत है।
सब जीवन से अब प्रेम करो , मन को लगता मनभावत है।।
सबके मन में घनश्याम बसे , जब प्रीति बढ़े गुणगावत है।
जब वैर न हो मन में तबहीं , पशुपालन प्रेम बढ़ावत है ।।
परिचय-
शिक्षा– एम.ए.( हिन्दी ),पीएच-डी
कार्यक्षेत्र- शिक्षिका
कवयित्री एवं विविध विधाओं की लेखिका
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