वरदान हैं प्रभु का ये हमारी बेटियाँ
ध्वनि आमेटा, डुंगरपुर (राजस्थान) भारत
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आती है समृद्धि जहाँ पर इनका वास है।
लक्ष्मी सरस्वती यहाँ करती निवास है।
हजारों पुण्य कर्म का फल होतीं बेटियाँ,
नसीब वालों के घर जन्म लेतीं शक्तियाँ,
पहले तो इन्हें जीने का अधिकार दिलाओ,
माता पिता होने का अपना फर्ज निभाओ,
मुस्कान हैं सभी की ये हमारी बेटियाँ,
वरदान हैं प्रभु का ये हमारी बेटियाँ।
इनको अपने सर का कभी बोझ न मानो,
कर्तव्य क्या तुम्हारा इस बात को जानो।
बेटों की तरह इनका हौसला बढाइए,
सर उठा के जी सकें इतना पढ़ाइए।
कलियाँ हैं चमन की इनको महकने तो दो,
बुलबुल की भाँति इनको चहकने तो दो,
एक दिन छूएँगी आसमाँ को अपने कर्म से,
हो जाएगा सर ऊँचा हमारा उनके गर्व से।
हर काल में दरिंदों ने सताया है इन्हें,
बनाकर खिलौना सदा रुलाया है इन्हें,
दहेज के लिए कभी जिंदा जला दिया,
देकर हजारों यातना विष भी पिला दिया।
पल पल सितम तुम्हारे सहती रही हैं ये,
पीकर आसूं गम के सिसकती रही हैं ये।
मासूम सी कलियों पर यूँ न जुल्म ढहाइए,
इंसान हैं इंसानियत जरा दिखाइए।
मुस्कान ये धरा पर हम सबकी बेटियाँ।
वरदान हैं प्रभु का ये हमारी बेटियाँ।
बेटी पर कुछ दोहे...
सुशीला जोशी विद्योत्तमा मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) भारत
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1--बेटी फूल गुलाब का , खुद महके महकाय ।
बाबुल का घर आँगना , खुशबू से भर जाय ।।
2--घर की लक्ष्मी बेटियां ,सकल सँवारे काम ।
घर मे पी के रह रहीं , करती बाबुल नाम ।।
3--सहन शक्ति साक्षात है , सहती सबकी आग ।
घर परिवार बना रहीं , अपना सबकुछ त्याग ।।
4--धान पौध सी जिंदगी , बेटियों का जीवन ।
जन्मी बाबुल आँगना , दूजे घर मे सृजन ।।
5--माता की परछाइयाँ , होती बेटी रूप ।
जहाँ जहाँ भी खड़ी रहे , बनती छाया रूप ।।
6--बेटी एक संस्कार है , जो माता की देन ।
तीन पीढियां तारती , बोले बैन सुबैंन ।।
7--माता ऋण से उऋण का , साधन बेटी रूप ।
सन्तति का प्रतिदान दे , खिलती कच्ची धूप ।।
8-- पुरुष शक्ति हैं बेटियाँ , इस जग का आधार ।
सारे जग में गूँजता , बेटी का व्यवहार ।।
बेटी सरल सुजान
आत्मप्रकाश कुमार, अहमदाबाद (गुजरात) भारत
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बेटी के ही रूप में ,घर-घर में भगवान ।
पर इसको समझा नहीं ,यह मूरख इंसान ।
यह मूरख इंसान ,आज क्या तोल रहा है,
बेटा पाने यार, ईश से बोल रहा है ।
कह "कुमार" यूँ देख ,लगे प्यारी हो लेटी,
ईश्वर का ही रूप ,हुआ करती है बेटी।।१।।
माँ की गोदी में अगर, बेटी हो भयभीत ।
कहाँ मिलेंगी लोरियाँ, कहाँ मिलेंगे गीत ।
कहाँ मिलेंगे गीत, अरे वो क्या हुलसे गी,
आँचल माँ का मिला, नहीं तो वह झुलसे गी ।
कह "कुमार" तब देख, लगे यूँ सुन्दर झाँकी ,
हँसती बिटिया अगर ,भरी हो गोदी मां की ।।२।।
बोली बोले तोतली ,बेटी सरल सुजान ।
दिल की यह भोली बड़ी ,नफ़रत से अनजान ।
नफ़रत से अनजान, प्यार की सागर है यह ,
राधा कृष्ण मुरारी नटवर नागर है यह ।
कह "कुमार" बस देख ,लगे यूँ सूरत भोली,
मन लेती है मोह, बोल कर मीठी बोली।।३।।
हमको तो अच्छी लगे, बिटिया की मुस्कान ।
इसके भोले रूप में, दिखता है भगवान ।
दिखता है भगवान, मुझे इसकी बातों में,
बैर नाम का अँकंं नहीं ,इसके खातों में ।
कह "कुमार"हम आज, इसे पा भूले ग़म को,
बिटिया हर पल देख, दिखाती खुशियाँ हमको।।४।।
जिस घर में बेटी नहीं ,वह घर है सुनसान ।
मात-पिता की बेटियाँ , सदा बढ़ातीं शान ।
सदा बढ़ातीं शान ,रहे घर में किलकारी ,
बेटी की मुस्कान, सदा लगती है प्यारी ।
कह " कुमार" दे फूल, खिला धरती बंजर में ,
खुशियाँ रहतीं खूब, रहे बेटी जिस घर में ।।५।।
मेरी बेटी
बिंदु गोयल, अंबाला (हरियाणा) भारत
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जब खुदा का नूर बरसता है
और नभ से नेह टपकता है
हजार नियामतें होंगी उस पर
बेटी का पिता जब बनता है।।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।
कभी बैठ गोद में मेरी ममता से मुझे नहलाती है।
कभी परी बन मुझे परियों के देश ले जाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।।
कभी अक्स बन मुझे मेरी ही छाया दिखाती है।
कभी बचपन से अपने मुझको खूब लुभाती है।
कभी चांँद बन मुझको नभ की सैर कराती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।।
कभी सहला दिल को मेरी सखी बन जाती है।
कभी कभी तोजैसे वह मेरी मांँ भी बन जाती है।
कभी डांटती मुझे मेरी दादी नानी बन जाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।।
कभी उड़कर नील गगन में दाना भी ले आती है।
कभी मौके पर तो वह लाठी भी बन जाती है।
कभी जीवन कभी मंजिल मेरी वही एक थाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।।
कलम उठाओ मेरी बेटी
रमेश कुमार सिंह 'रुद्र' कैमूर (बिहार) भारत
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कलम उठाओ मेरी बेटी,
लिख डालो स्वर्णिम अक्षर।
ज्ञान पिपासा बनकर तुम
बन जाओ प्रबुद्ध प्रखर।
करो नाम जग में ऐसा
धारा प्रवाह बनकर प्रबल।
प्रत्येक अक्षर पढ लिख कर
बन जाओ ज्ञानवान सबल।
बेटी रुप न दिखे कभी तुम
तुम अपनी दिखा दो विद्वता
किसी से भी कम न रहो तुम
दुनिया दिखा दो कर सिद्धता।
प्यारी दृष्टि के लिए
प्रीति चौधरी "मनोरमा", बुलन्दशहर (उ॰प्र॰) भारत
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मेरी बिटिया सबसे प्यारी है,
अँधेरी रातों की उजियारी है।
रौशन हैं उससे ही जमीन आसमान,
सूरज ,चाँद,जगमग तारों पर भारी है।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
देख नहीं सकती मैं उसकी आँखों में आँसू,
उसकी एक मुस्कान पर दो जहाँ वारी हैं।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
बेटियाँ उम्र भर माँ के पास नहीं रहतीं,
यही समाज की असाध्य बीमारी है।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
बेटी होती हैं पराया धन मायके में,
आज यहाँ है, कल जाने की तैयारी है।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
मेरी बेटी है तराशा हुआ हीरा कोई,
अनमोल बनाऊँगी प्रयास जारी है।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
ये घुँघराले बाल, आँखों की मासूमियत,
इस सौन्दर्य के आगे फीकी कायनात सारी है।
मेरी बिटिया सबसे प्यारी है।।
सुरभि
डॉ. अनिता सिंह बिलासपुर (छत्तीसगढ़) भारत
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तुम एक खूबसूरत
खुशबूदार फूल हो
जिससे सुरभित होता है
मेरा सारा घर आँगन ।
जब तुम आती हो हमारे करीब
तिरोहित हो जाती है थकान।
तुम्हारा आलिंगन भर देता है
उर में आनंद।
मेरी रानी बिटिया, कैसे बताऊँ कि
तुममे बसती है मेरी जान
तेरी ख्यालों, तेरी यादें के
बगैर नहीं होता बिहान
तुझसे ही पूरा होता है
मेरा अधूरा परिवार ।
आज जब तुम मुझसे दूर हो तो
छायी रहती है तन मन पर
एक बोझिल सी थकान।
बंजर जमीन पर कहीं
एक फूल खिला जाता है
तेरे आगमन का इंतजार।
ता-ता-थैया खड़ी हो गयी
श्री प्रिय रत्न, मुजफ्फरपुर, (बिहार) भारत
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ता-ता-थैया खड़ी हो गयी,
मैं पापा से बड़ी हो गयी ।
फोटो जल्दी खिचों मम्मी,
फूलों की एक लड़ी हो गयी ।।
अब जाऊँगी पढने स्कूल,
जीवन का है यहीं दस्तूर ।
खूब पढूँगी खूब लिखूँगी,
किसी देश की राजदूत बनूँगी ।।
बेटा बेटी एक समान,
मेरा भारत देश महान।
बेटी बचाओ बेटी पढाओ,
भारत माँ का मान बढाओ ।।
बेटी हमारी सुमन
रीतु प्रज्ञा, दरभंगा (बिहार) भारत
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बेटी हमारी खिलती सुमन,
देती सौरभ खिलखिलाती कुसुम।
गुलजार होती हँसी
निराली होती छवि
मिलती है सौभाग्य से
कृति अनुपम जग में
कलकल करती तरह नदियाँ,
सुहानी करती हैं वादियाँ ।
प्यारी-प्यारी हैं राजदुलारी,
न्यारी-न्यारी है उसकी किलकारी।
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